Tuesday, June 5, 2012


15000 पादप प्रजातियां खत्म!
 मानवीय चूक ने ग्लोबल वॉर्मिग की चक्रीय गति को तेज कर दिया है! जी हां, वैज्ञानिकों की शोध रिपोर्ट पर गौर करें तो वैश्विक चुनौती को इंसान ने ही चौगुना कर दिया है। नतीजतन बेतहाशा तापवृद्धि व जलवायु परिवर्तन से कुछ ही अंतराल में रबी व खरीफ की फसल में 50 से 70 फीसद गिरावट आई है। विज्ञानी आगाह करते हैं, यदि हिमालयी क्षेत्र में तापमान वृद्धि पर जल्द नियंत्रण न किया गया तो 15 वर्ष के भीतर 10 से 15 वनस्पति प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। दरअसल, ग्लोबल वॉर्मिग नैसर्गिक प्रक्रिया है। फिलवक्त दुनिया ग्लोबल वॉर्मिग के पांचवें दौर से गुजर रही है। एक चक्र लाखों साल में पूरा होता है। मगर मानवीय गतिविधियों मसलन, वनों का अंधाधुंध दोहन, दावाग्नि व क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफसी) गैसों के बेतहाशा उत्सर्जन ने चक्रीय गति को काफी बढ़ा दिया है। उत्तराखंड सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज (यूसीसीसी) के समन्वयक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो.जेएस रावत के अनुसार तापमान लगातार बढ़ रहा है और यह सिलसिला नहीं थमा तो आने वाले 15 सालों में 10 से 15 फीसद वनस्पतिक प्रजातियां लुप्त हो जाएंगी। यानी हर साल तापवृद्धि से ही एक प्रजाति इतिहास बनेगी। प्रो.रावत इस चुनौती से पार पाने को भू-गणित के अध्ययन की वकालत भी करते हैं, ताकि पर्यावरण को मजबूत कवच मिल सके। बकौल प्रो.रावत तापमान वृद्धि के लिए अकेली कार्बन गैस जिम्मेदार नहीं है। मानव जनित करीब दर्जन भर क्रियाकलाप जलवायु परिवर्तन में नकारात्मक रोल अदा रहे हैं। भूगर्भीय प्लेटों से भी तापवृद्धि विज्ञानियों के मुताबिक भूगर्भीय प्लेटों के खिसकने से भी गर्मी बढ़ती है। यही नहीं पृथ्वी के घूमते वक्त आकार में परिवर्तन अर्थात कभी अंडाकार तो कभी वृत्ताकार रूप में आने आदि कारण भी तापमान वृद्धि में सहायक साबित होते हैं। पर्यावरणीय आघात से मानवीय मनोविज्ञान प्रभावित जलवायु परिवर्तन में क्लाइमेट शॉक यानी पर्यावरणीय आघात भी पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है। इससे फसल चक्र व मानवीय मनोविज्ञान एवं पेड़-पौधे भी प्रभावित हो रहे हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो.जेएस रावत का कहना है कि जलवायु परिवर्तन को सही परिपेक्ष्य में समझना होगा और जियोग्रेफिक इनफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) व जियोग्रेफिक पोर्टल सिस्टम (जीपीएस) पर आधारित शोध की महती जरूरत है। अमूमन विश्व के ज्यादातर वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन को ग्लोबल वॉर्मिग से जोड़ते हैं। मगर इसके हर पहलू को सही परिपेक्ष्य में समझना होगा। हिमालयी क्षेत्र में .74 डिग्री तापमान में वृद्धि तथा रात में तापमान शून्य तो दिन में एकाएक 26 डिग्री के पार पहुंचना भी कहीं न कहीं पर्यावरणीय खतरे के प्रति आगाह करता है।

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