...........Energy crisis in india.............{imp for mains}
सस्ती व सतत ऊर्जा किसी भी देश की तरक्की के लिए सर्वाधिक जरूरी संसाधन है। किसी भी देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा का मतलब है कि वर्तमान और भविष्य आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लाभान्वित हों और पर्यावरण पर भी कोई कुप्रभाव न पड़े। इस संदर्भ में गुजरात ने एक मिसाल कायम की है। पिछले दिनों गुजरात में 600 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना भारत ही नहीं पूरे एशिया के लिए एक उदाहरण है। देश में सौर संयंत्रों से कुल 900 मेगावाट बिजली पैदा होती है। इसमें 600 मेगावाट अकेले गुजरात बना रहा है। गुजरात ने नहर के ऊपर सौर ऊर्जा संयंत्र लगा कर अनूठी मिसाल कायम की है। इससे बिजली तो बनेगी ही, पानी का वाष्पीकरण भी रुकेगा। नहर पर छत की तरह तना यह संयंत्र दुनिया में पहला ऐसा प्रयोग है। पिछले दो माह में दो लाख यूनिट बिजली का इससे उत्पादन किया जा चुका है। गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थापित यह संयंत्र 16 लाख यूनिट बिजली का हर साल उत्पादन करेगा। साथ ही वाष्पीकरण रोककर 90 लाख लीटर पानी भी बचाएगा। संयंत्र की लागत भी लगभग 12 करोड़ रुपये है। गुजरात में नर्मदा सागर बांध के नहरों की कुल लंबाई 19 हजार किलोमीटर है और अगर इसका दस प्रतिशत भी इस्तेमाल होता है तो 2400 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा। नहरों पर संयंत्र स्थापित करने से 11 हजार एकड भूमि अधिग्रहण से बच जाएगी और दो अरब लीटर पानी की सालाना बचत अलग से होगी। यह प्रयोग अन्य राच्यों में भी अपनाया जा सकता है। बढ़ती आबादी और विकास को गति देने के लिए ऊर्जा की मांग दिनोंदिन बढ़ रही है। दुर्भाग्यवश ऊर्जा के हमारे प्राकृतिक संसाधन बहुत सीमित हैं। हमें बहुत सा पेट्रोलियम आयात करना पड़ता है। हमारे यहां आवश्यकता के अनुरूप विद्युत का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का यह विचार काफी मायने रखता है कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की तर्ज पर भारत के नेतृत्व में सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन सूर्यपुत्र देश बनाया जाए। जब जी-8, दक्षेस, जी-20 और ओपेक जैसे संगठन बन सकते हैं तो सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन क्यों नहीं बन सकता? भारत ऐसे देशों के संगठन का नेतृत्व कर सकता है और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में शक्ति बनकर अपना दबदबा भी कायम कर सकता है। भारत में सौर ऊर्जा की असीम संभावनाएं है। गुजरात से प्रेरणा लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राच्यों को भी पहल करनी चाहिए। ये राच्य भी बिजली के संकट से जूझ रहे हैं, जबकि धूप यहां साल में आठ महीने रहती है। मध्यप्रदेश सरकार ने भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाते हुए सौर ऊर्जा के लिए भूमि बैंक की स्थापना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। महाराष्ट्र सरकार ने भी उस्मानाबाद व परभणी में 50-50 मेगावाट के दो संयंत्र लगाने की पहल प्रारंभ की है। वर्तमान में ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा Fोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता इतनी बढ़ रही है कि इन Fोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले 40 वर्षो में इन Fोतों के खत्म होने की संभावना है। ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जा आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा Fोतों से बिजली प्राप्त करने का विकल्प ही बचता है। अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है। हमें घरेलू, औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में जरूरी ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए दूसरे वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। भारत में अक्षय ऊर्जा के कई Fोत उपलब्ध हैं। सुदृढ़ नीतियों द्वारा इन Fोतों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है
..........dainik jagran................
सस्ती व सतत ऊर्जा किसी भी देश की तरक्की के लिए सर्वाधिक जरूरी संसाधन है। किसी भी देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा का मतलब है कि वर्तमान और भविष्य आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लाभान्वित हों और पर्यावरण पर भी कोई कुप्रभाव न पड़े। इस संदर्भ में गुजरात ने एक मिसाल कायम की है। पिछले दिनों गुजरात में 600 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना भारत ही नहीं पूरे एशिया के लिए एक उदाहरण है। देश में सौर संयंत्रों से कुल 900 मेगावाट बिजली पैदा होती है। इसमें 600 मेगावाट अकेले गुजरात बना रहा है। गुजरात ने नहर के ऊपर सौर ऊर्जा संयंत्र लगा कर अनूठी मिसाल कायम की है। इससे बिजली तो बनेगी ही, पानी का वाष्पीकरण भी रुकेगा। नहर पर छत की तरह तना यह संयंत्र दुनिया में पहला ऐसा प्रयोग है। पिछले दो माह में दो लाख यूनिट बिजली का इससे उत्पादन किया जा चुका है। गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थापित यह संयंत्र 16 लाख यूनिट बिजली का हर साल उत्पादन करेगा। साथ ही वाष्पीकरण रोककर 90 लाख लीटर पानी भी बचाएगा। संयंत्र की लागत भी लगभग 12 करोड़ रुपये है। गुजरात में नर्मदा सागर बांध के नहरों की कुल लंबाई 19 हजार किलोमीटर है और अगर इसका दस प्रतिशत भी इस्तेमाल होता है तो 2400 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा। नहरों पर संयंत्र स्थापित करने से 11 हजार एकड भूमि अधिग्रहण से बच जाएगी और दो अरब लीटर पानी की सालाना बचत अलग से होगी। यह प्रयोग अन्य राच्यों में भी अपनाया जा सकता है। बढ़ती आबादी और विकास को गति देने के लिए ऊर्जा की मांग दिनोंदिन बढ़ रही है। दुर्भाग्यवश ऊर्जा के हमारे प्राकृतिक संसाधन बहुत सीमित हैं। हमें बहुत सा पेट्रोलियम आयात करना पड़ता है। हमारे यहां आवश्यकता के अनुरूप विद्युत का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का यह विचार काफी मायने रखता है कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की तर्ज पर भारत के नेतृत्व में सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन सूर्यपुत्र देश बनाया जाए। जब जी-8, दक्षेस, जी-20 और ओपेक जैसे संगठन बन सकते हैं तो सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन क्यों नहीं बन सकता? भारत ऐसे देशों के संगठन का नेतृत्व कर सकता है और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में शक्ति बनकर अपना दबदबा भी कायम कर सकता है। भारत में सौर ऊर्जा की असीम संभावनाएं है। गुजरात से प्रेरणा लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राच्यों को भी पहल करनी चाहिए। ये राच्य भी बिजली के संकट से जूझ रहे हैं, जबकि धूप यहां साल में आठ महीने रहती है। मध्यप्रदेश सरकार ने भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाते हुए सौर ऊर्जा के लिए भूमि बैंक की स्थापना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। महाराष्ट्र सरकार ने भी उस्मानाबाद व परभणी में 50-50 मेगावाट के दो संयंत्र लगाने की पहल प्रारंभ की है। वर्तमान में ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा Fोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता इतनी बढ़ रही है कि इन Fोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले 40 वर्षो में इन Fोतों के खत्म होने की संभावना है। ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जा आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा Fोतों से बिजली प्राप्त करने का विकल्प ही बचता है। अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है। हमें घरेलू, औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में जरूरी ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए दूसरे वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। भारत में अक्षय ऊर्जा के कई Fोत उपलब्ध हैं। सुदृढ़ नीतियों द्वारा इन Fोतों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है
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